पर यह सिद् ध नहीं किया जा सकता कि चैतन्य (विचार) का विकास जड़ से हुआ हैं, और यदि कोई दार्शनिक अद् वैतवाद अनिवार्य हैं, तो आध्यात्मिक अद् वैतवाद निश् चय ही तर्कसंगत हैं और भौतिक अद् वैतवाद से किसी भी प्रकार कम वाँछनीय नहीं ; परंतु यहाँ इन दोनों की आवश्यकता नहीं हैं।
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पर यह सिद् ध नहीं किया जा सकता कि चैतन्य (विचार) का विकास जड़ से हुआ हैं, और यदि कोई दार्शनिक अद् वैतवाद अनिवार्य हैं, तो आध्यात्मिक अद् वैतवाद निश् चय ही तर्कसंगत हैं और भौतिक अद् वैतवाद से किसी भी प्रकार कम वाँछनीय नहीं ; परंतु यहाँ इन दोनों की आवश्यकता नहीं हैं।
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पर यह सिद् ध नहीं किया जा सकता कि चैतन्य (विचार) का विकास जड़ से हुआ हैं, और यदि कोई दार्शनिक अद् वैतवाद अनिवार्य हैं, तो आध्यात्मिक अद् वैतवाद निश् चय ही तर्कसंगत हैं और भौतिक अद् वैतवाद से किसी भी प्रकार कम वाँछनीय नहीं ; परंतु यहाँ इन दोनों की आवश्यकता नहीं हैं।